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छतरपुर जिले के बागेश्वर धाम में बन रहे हिंदू ग्राम में पांच ब्लॉक बनाए जा रहे हैं, जिनमें एक का नाम उर्मिल नदी पर रखा गया है. लोकमान्यता है कि उर्मिला नदी, मां सीता से मिलने के लिए बनी थी. समय के साथ उर्मिला नद…और पढ़ें

उर्मिल नदी
हाइलाइट्स
- छतरपुर के बागेश्वर धाम में बन रहे हिंदू ग्राम में पांच ब्लॉक बनाए जा रहे हैं.
- इनमें एक का नाम उर्मिल नदी पर रखा गया है.
- लोकमान्यता है कि उर्मिला नदी, मां सीता से मिलने के लिए बनी थी.
छतरपुर: छतरपुर जिले के ग्राम गढ़ा स्थित बागेश्वर धाम में हिंदू ग्राम के निर्माण कार्य की शुरुआत हो गई है. इस हिंदू ग्राम में पांच ब्लॉक बनाए जा रहे हैं, जिनके नाम पवित्र नदियों के नाम पर रखे गए हैं. इन्हीं में से एक है उर्मिल नदी, जिसका नाम पहले उर्मिला नदी था. बाद में समय के साथ इसका नाम अपभ्रंश होकर उर्मिल नदी पड़ गया. लोकमान्यता है कि इस नदी से मिलने मां सीता की छोटी बहन उर्मिला नदी बनकर आई थीं.
मां बंबरबैनी समिति के उपाध्यक्ष मातादीन विश्वकर्मा बताते हैं कि छतरपुर जिले की उर्मिल नदी का वास्तविक नाम उर्मिला नदी था. यह नदी लवकुश नगर स्थित मां बंबरबैनी पहाड़ी के समीप से बहती है. मान्यता है कि मां सीता ने इसी पहाड़ी पर वनवास के दौरान निवास किया था. इस पहाड़ी पर स्थित देवी मां को वनदेवी के नाम से भी जाना जाता है. वर्षों से यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है.
मां सीता प्रतिदिन उर्मिला नदी में करती थीं स्नान
लोककथा के अनुसार, वनवास में रह रहीं मां सीता को उनकी छोटी बहन उर्मिला की बहुत याद आती थी. उर्मिला ने अपनी बहन से मिलने के लिए नदी का रूप धारण कर लिया था. इस प्रकार उर्मिला नदी बनकर वह मां सीता के समीप पहुंची थीं. मां सीता प्रतिदिन उर्मिला नदी में स्नान करतीं और अपनी बहन से मिलती थीं. यह मुलाकात दोनों बहनों के लिए अत्यंत सुखदायी और आत्मिक संतोष देने वाली होती थी.
चट्टान पर प्रभु श्रीराम के बने हुए हैं चरण चिन्ह
मातादीन आगे बताते हैं कि इस क्षेत्र में सिंहपुर नामक स्थान भी है, जहां एक शहीद स्थल स्थित है. यहां एक चट्टान पर प्रभु श्रीराम के चरण चिन्ह बने हुए हैं. यह चट्टान भी उर्मिल नदी के किनारे पर स्थित है. मान्यता है कि मां सीता प्रतिदिन उर्मिल नदी में स्नान के बाद प्रभु श्रीराम के चरणों के दर्शन भी करती थीं.
समय के साथ उर्मिला नदी का नाम अपभ्रंश होकर उर्मिल नदी हो गया. हालांकि, इस नदी से जुड़ी पौराणिक कथाएं आज भी स्थानीय लोगों के बीच जीवंत हैं. गांव के बड़े-बुजुर्ग आज भी बच्चों को इस पावन कथा के बारे में बताते हैं, जिससे इस नदी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बना हुआ है.
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