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वैज्ञानिकों का कहना है कि एआई इंसानों की बुद्धि कमजोर करती जा रही है. इंसानी आईक्यू स्कोर घट रहा है और अगले दशक में एआई इंसानों को बेकार कर सकती है. सोशल मीडिया भी आलोचनात्मक सोच पर बहुत बुरा असर डाल रहा है.

इंसानी दिमाग पर एआई का बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
हाइलाइट्स
- एआई इंसानों की बुद्धि कमजोर कर रही है
- अगले दशक में एआई इंसानों पर हावी हो सकती है
- सोशल मीडिया आलोचनात्मक सोच पर बुरा असर डाल रहा है
हर कुछ दिन में हम सुनते हैं कि आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस यानी एआई जल्दी ही इंसानों को पीछे छोड़ कर उन पर हावी तक हो जाएगी. कुछ लोग इस बारे में अनुमान भी लगाते पाए जाते हैं कि ऐसा कब होगा. लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि एआई तेजी से इंसानों को मंदबुद्धि या मूर्ख बना कर रहेगी. उनकी दलील है कि एआई दिमाग चलाने वाले बडे बड़े कामों को अपने हाथ में ले रही है और इससे हम इंसान सोचने की काबिलियत खोते चले जा रहे हैं और जल्दी ही ऐसा वक्त आएगा कि एआई इंसानों को बेकार कर देगी और ऐसा केवल एक दशक में हो जाएगा.
केवल देखते रह जाएगा इंसान
वैज्ञानिकों को कहना है कि एआई तेजी से ज्यादा से ज्यादा बुद्धिमान होती चली जा रही है. लेकिन इंसान केवल इसे देखते रह जाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकेंगे. एक्सपर्ट्स ने पाया है कि इंसान अपनी दिमागी ताकत खो रहे है, जैसे जैसे हम जनेरेटिव एआई का इस्तेमाल कर रहे हैं. एआई अब बिना इंसानी दखल के नया कटेंट तक बना सकता है.
हर साल बुद्धि में कमजोर होते जा रहे हैं हम
वैज्ञानिकों ने प्रोफेसर जेम्स फ्लिन के नाम पर फ्लिन प्रभाव का जिक्र किया है. उन्होंने पाया था कि पीढ़ी दर पीढ़ी इंसान बुद्धिमत्ता परीक्षणों में ज्यादा अंक लाते जाते हैं, पर यह चलन अब पलट रहा है. ज्यादा बुद्धिमान होने और आईक्यू टेस्ट में ज्यादा स्कोर करने की जगह हम अब लगातार कम अंक ला रहे हैं और ये स्कोर हर साल कम होता जा रहा है. यानि हम हर साल मंदबुद्धि होते जा रहे हैं.

एआई की वजह से इंसानों की क्रिटिकल थिंकिंग यानी आलोचनात्मक सोच पर सबसे बुरा असर हो रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
घटता जा रहा है आईक्यू
वैज्ञानिकों को कहना है कि बीचे तीन दशकों से हमारा आईक्यू स्कोर लगातार गिर रहा है. ऐसा तब से है जब से इंटरनेट आया है. बल्कि 1949 में जब से इस तरह के टेस्ट शुरू हुए हैं. हाल का स्कोर सबसे कम है. नोबेल पुरस्कार विजेता और गूगल डीपमाइंड के सह संस्थापक सर डेमिस हसाबिस तो यह तक कह रहे हैं कि हो सकता है कि इंसान अगले एक दशक में ही बेकार साबित होने लगेंगे.
कमजोर हो गई है इंसानी बुद्धि
अध्ययन बताते हैं कि एआई पर निर्भरता बढ़ रही है, जबकि आईक्यूस्कोर घटता जा रहा है. हमारी आलोचनात्मक सोच और ध्यान देने क्षमता दोनों मे कमी देखने को मिल रही है, क्योंकि इंसान सीखने की क्षमताओं और विशेषज्ञताओं से वंचित हैं. कॉर्नेल यूनिर्सिटी के मनोविशेषज्ञ रॉबर्ट स्टैमबर्ग का कहना है कि एआई ने पहले ही मानव बुद्धिमत्ता को कमजोर कर दिया है.
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स्विट्जरलैंड में कोल्टन के एसबीएस स्विस बिजनेस स्कूल के माइकल गेरलिटच ने 666 ब्रिटिश नागरिकों की आलोचनात्मक सोच का परीक्षण किया और पाया कि एआई का इस सोच से गहरा नाता है. वे कहते हैं कि सोशल मीडिया का ओलोचनात्मक सोच पर बहुत ज्यादा असर पड़ा है. सोशल मीडिया पर संदेश और वीडियो आसानी से समझ में तो आ जाते हैं, लेकिन आलोचनात्मक सोच से नहीं उभर पाते हैं.
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