खरगोन. मध्य प्रदेश का एक गांव ऐसा भी, जहां न तो किसी की बारात आती है, और न ही गांव से बाहर किसी की बारात जाती है. यहां लड़के-लड़कियों की शादियां गांव में ही हो जाती है. जी हां, हम बात कर रहे हैं खरगोन के चोली गांव की, जिसे देवों की नगरी देवगढ़ और मिनी बंगाल भी कहा जाता है. मुगलकाल से ही यहां यदुवंशी ठाकुर समाज में विवाह की यह अनोखी परम्परा चलन में है. रिश्ते ढूंढने के लिए लोगों को गांव की सीमा नहीं लांघनी पड़ती है. कई महिलाएं तो ऐसे है, जिनका मायका और ससुराल आमने-सामने है.
बरहाल, आज 30 अप्रैल 2025 को अक्षय तृतीया (आखा तीज) के दिन भी इस गांव में कई जोड़े विवाह के बंधन में बंधने जा रहे हैं. ऐसा ही एक विवाह गांव के निर्भय सिंह पटेल के सुपुत्र अक्षय पटेल और जगदीश ठाकुर की सुपुत्री भामिनी के बीच हो रहा है. Local18 से बातचीत में 26 वर्षीय अक्षय (प्रेस्टीसाइज दुकान संचालक) कहते हैं कि, इस विवाह से बेहद खुश है. उनका ससुराल महज 5-6 घर छोड़कर ही है. बारात पूरे गांव में घुमाकर ले जाएंगे.
5 घर छोड़ मायका और ससुराल
वहीं, भामिनी ने कहा कि, अक्षय जैसा जीवन साथी पाकर खुश है. एक ही गांव में रहते है, दोनों एक दूसरे को भली भांति जानते हैं. व्यवहार, आचरण से परिचित हैं. पहले से सब पता होने से विवाह के बाद कोई दिक्कत नहीं होती. गांव में सभी की शादियां इसी तरह होती है. मायका और ससुराल नजदीक होने से दोनों घर आने जाने में वक्त नहीं लगता. छोटे-छोटे आयोजनों में भी शामिल हो पाते है.
सभी रिश्तेदार तो कैसे तय होते है विवाह
भामिनी के पिता जगदीश ठाकुर ने बताया कि, इस गांव में सभी एक दूसरे के रिश्तेदार हैं. मैने अपनी बेटी की शादी अपनी बहन के परिवार में अक्षय के साथ की है. उन्होंने कहा कि, विवाह के लिए रिश्ता तय करते समय माता-पिता के कुल और गोत्र देखते हैं. 5 गोत्र छोड़कर रिश्ता जोड़ लेते है. बहन का विवाह होने से कुल और गोत्र बदल गया, इसलिए रिश्ता कर लिया.
इस तरह शुरू हुई गांव में परम्परा
ग्रामीण एवं दूल्हे के काका किशोर सिंह ठाकुर (तकन बाबा) ने बताया कि, गांव में यह परम्परा मुगलकाल से चली आ रही है. उस समय मुगल दुल्हनों को उठाकर ले जाते थे, इसलिए रात के अंधेरे में गांव में ही विवाह की यह परम्परा शुरू हुई. हालांकि, इसके पीछे और भी कई कारण है. गांव में करीब 700 घरों में 5 हजार से ज्यादा आबादी ठाकुर समाज की है, जो गांव की कुल आबादी का लगभग 80 फीसदी है. गांव में समाज के 42 गोत्र है. इसलिए रिश्ता करने में सहूलियत होती है.
इसकी भी गांव में ही करते है रिश्ते
मध्य प्रदेश में निमाड़ अंचल में चोली इकलौता गांव है, जहां यदुवंशी ठाकुर समाज रहता है. इसके अलावा समाज के लोग गुना, ग्वालियर, मालवा और दूसरे राज्यों में निवास करते हैं. वहां के ठाकुर आर्थिक रूप से काफी मजबूत हैं, जबकि यहां के लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं. इसलिए भी गांव में ही रिश्ते तय कर लेते हैं. इसका एक कारण यह भी होता है कि बच्चों को बचपन से बड़े होते है देखा है, संस्कार ओर परवरिश की जानकारी होती है. इसलिए विवाह विच्छेद भी यहां न के बराबर होते है.
99.9 फीसदी विवाह गांव में ही होते है
दुल्हन की बुआ राधा यादव (शिक्षक) कहती हैं कि, यहां के यदुवंशी ठाकुर मूलतः राजस्थान, करौली और ब्रज के रहने वाले हैं. गांव में ही 42 गोत्र होने से कही और रिश्ता करने की जरूरत नहीं पड़ती. 99.9 प्रतिशत शादियां इसी गांव में होती है. कुछ लोगों की शादियां बाहर हुई है. समाज में लव मैरेज और बाल विवाह भी नहीं होते. माता-पिता अपने बच्चों का विवाह तय करते हैं. हालांकि, अब समय के साथ बच्चो की रजामंदी जरूर ली जाती है.
घराती-बाराती दोनों की भूमिका में रिश्तेदार
गांव की अर्चना ठाकुर कहती हैं कि, उनकी शादी भी इसी गांव में हुई है. दुल्हन उनके भाई की लड़की है. जबकि, दूल्हा भतीजा है. सुधा पटेल ने कहा कि, मैं दुल्हन की बुआ लगती हूं और भामिनी मेरे ही परिवार में ब्याही गई है. दूल्हा अक्षय उनके काका ससुर का लड़का है. अब दोनों जगह सभी रस्मों में शामिल होते हैंं. दूल्हे के साथ बाराती बनकर आते हैं. दुल्हन के घर आते ही घराती बन खुद का स्वागत करते हैं. परोसदरी से लेकर तमाम व्यवस्थाएं संभालते है.
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