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Ajab Gajab News: यूपी में कौशांबी जनपद के करारी कस्बे का किंग नगर मोहल्ले में बेटियों को बचाने के लिए अनोखी परंपरा है, जहां दामाद शादी के बाद ससुराल में ही रहते हैं. इस मोहल्ले को ‘दामादों का पुरवा’ कहा जाता है…और पढ़ें

कौशाम्बी जिला
हाइलाइट्स
- कौशांबी के किंग नगर में दामाद घर जमाई बनते हैं.
- इस परंपरा से बेटियों को उत्पीड़न से बचाया जाता है.
- मोहल्ले में 50 से अधिक दामाद रहते हैं.
कौशांबी: यूं तो हमारा भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है. यहां जगह-जगह पर तरह-तरह की भाषाएं तरह-तरह की वेशभूषा और मान्यताएं देखने और सुनने को मिलती हैं. ऐसे ही एक परंपरा यूपी के कौशांबी जनपद के एक मोहल्ले से देखने और सुनने को मिलती है. इस मोहल्ले की सच्चाई जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे. आइए जानते हैं कौशांबी के इस गांव की अनोखी परंपरा के बारे में..
मोहल्ले में रहते हैं 50 दामाद
देश में 2014 में बीजेपी सरकार बनने के बाद ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा लगाया गया, लेकिन कौशांबी जनपद के करारी कस्बे का किंग नगर मोहल्ला (दामादों का पुरवा) की आज भी परंपरा अनोखी है. इस कस्बे की बुजुर्ग महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर लोग काफी संजीदा थे, जिसके चलते उन्होंने यह नियम बनाया कि वह अपनी बेटी की शादी उसी से करेंगे, जो उनकी बेटी के साथ उनके मोहल्ले में ही रह सके. इस मुहिम के चलते आज भी यह मोहल्ला दामादों से भरा पड़ा है. स्थानीय लोगों के अनुसार आज भी इस मोहल्ले में 40 से 50 दामाद रहते हैं.
बेटियों को बचाने के लिए चलाई परंपरा
कौशांबी के जिला मुख्यालय से तकरीबन 12 किलोमीटर दूर बसे करारी कस्बे का किंग नगर मोहल्ले को लोग दामाद के मोहल्ले के नाम से जानते हैं. इस मोहल्ले की परंपरा को लेकर लोगों को कहना था कि चाहे दहेज प्रथा हो, दहेज को लेकर उत्पीड़न हो या भ्रूण हत्या हो. ऐसे तमाम अपराध जो कि समाज में व्याप्त थे, जिससे अपनी बेटियों को बचाने के लिए बुजुर्गों ने यह अनोखी मुहिम चलाई थी, जिससे उनकी बेटी दामाद के साथ उनके साथ ही रहे और किसी भी उत्पीड़न का शिकार ना हो.
यहां के दामाद बनते हैं घर जमाई
वहीं, स्थानीय लोगों की मानें तो शादी करने के बाद दामाद अगर बेरोजगार है, तो बाकायदा रोजगार भी मुहैया कराया जाता है. लोगों का कहना था कि दशकों पहले शुरू हुई इस मुहिम के चलते आज तकरीबन 50 ऐसे परिवार इस मोहल्ले में रहते हैं, जिनके मुखिया शादी के बाद घर जमाई बन गए और अपनी ससुराल में ही रहने लगे.
दामादों का पुरवा के नाम से जानते हैं लोग
ग्रामीणों ने बताया कि इस गांव का नाम दामादों का पुरवा इसलिए पड़ा है. क्योंकि यहां की बेटियां जो ब्याही जाती थी. भ्रूण हत्या और महिला उत्पीड़न होने के कारण बुजुर्गों ने एक रणनीति बनाई थी कि जहां भी अपनी बेटियों की शादी करेंगे. शादी के बाद अपने बेटी और दामाद को अपने ही साथ रखेंगे, जिससे उनकी बहन-बेटियों को कोई परेशानी न हो. इस वजह से मोहल्ले का नान दामादों का पुरवा पड़ा है. इसके साथ ही इसे किंग नगर के नाम से भी जाना जाता है.
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