12 घंटे के लिए खाली हो जाता है पूरा गांव, घरों को वीरान छोड़ जंगल चले जाते हैं लोग, गजब है इस गांव की परंपरा  

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पश्चिम चंपारण के बगहा अनुमंडल स्थित थरुहट क्षेत्रों में सदियों से एक ऐसी परंपरा चलती आ रही है, जो अपने आप में बेहद अनोखी और रोमांचकारी है. आज के इस आधुनिक दौर में भी प्रकृति को अपना ईष्ट और रक्षक मानते हुए किस …और पढ़ें

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प्रतीकात्मक तस्वीर 

हाइलाइट्स

  • थरुहट गांव के लोग 12 घंटे जंगल में बिताते हैं.
  • वैशाख नवमी को मां दुर्गा की पूजा करते हैं.
  • सदियों से चली आ रही है यह अनोखी परंपरा.

पश्चिम चम्पारण.ज़िले के बगहा अनुमंडल स्थित थरुहट क्षेत्रों में सदियों से एक ऐसी परंपरा चलती आ रही है, जो अपने आप में बेहद अनोखी और रोमांचकारी है. आज के इस आधुनिक दौर में भी प्रकृति को अपना ईष्ट और रक्षक मानते हुए किस प्रकार उसके सम्मान में 12 घंटे गुजारे जाते हैं, इसका अद्वितीय उदाहरण बिहार का दिल कहे जाने वाले थरुहट क्षेत्र में देखने को मिलता है. हर वर्ष वैशाख मास की नवमी तिथि को थरुहट का पूरा गांव 12 घंटे के लिए जंगलों में चला जाता है.

नज़ारा कुछ ऐसा हो जाता है मानों संपूर्ण इलाके में लॉकडाउन जैसी स्थिति कायम हो गई है. न तो कोई अपने घर में रुकता है और न ही कोई काम धंधों पर जाता है. यूं कहें तो 12 घंटों के लिए हर एक गतिविधि ठप हो जाती है.

गांव छोड़ जंगलों में चले जाते हैं लोग

इस अनोखी मान्यता पर लोकल 18 से बात करते हुए रामनगर प्रखंड स्थित नौरंगिया दोन की निर्मला देवी बताती हैं कि थरुहट की इस खास प्रथा को बरना के नाम से जाना जाता है. कई दशक पहले गांव में भयानक महामारी और प्राकृतिक आपदाओं का कहर बरपा था. कभी हैजा तो कभी आगलगी जैसी भयंकर घटना भी आम हो चुकी थी. निवारण के लिए ग्रामीणों ने संतों की सलाह ली.सिद्ध पुरुषों ने ग्रामीणों को एक खास संयोग पर प्रकृति की पूजा की सलाह दी. इस दौरान हर एक ग्रामीण को अपना घर और काम काज की चिंता छोड़ 12 घंटों के लिए जंगल में पनाह लेनी होगी और प्रकृति के साथ अन्य देवी देवताओं की पूजा करनी होगी.

जंगल में की जाती है मां दुर्गा की आराधना 

हिंदी कैलेंडर के अनुसार पूजा का खास दिन वैशाख मास की नवमी तिथि को निर्धारित हुआ. तब से लेकर अब तक नौरंगिया के लोग अपने सभी काम धंधों को छोड़ वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के भजनी कुट्टी जंगल में दिनभर के लिए शरण लेते हैं और मां दुर्गा सहित अन्य देवी देवताओं की पूजा करते हैं. इस दौरान भोजन की व्यवस्था भी जंगलों में ही की जाती है. सूर्यास्त के बाद देर रात होने पर ग्रामीण पुनः अपने घर वापस लौटते हैं और मंदिर से लाए गए जल से अपने-अपने घरों को शुद्ध करते हैं. मान्यता है कि इस जल से घर की शुद्धि होती है और देवी का आशीर्वाद बना रहता है.

सदियों से चली आ रही है यह प्रथा

इस परंपरा की सबसे खास बात यह है कि गांव में चाहे बच्चा हो या बुजुर्ग, स्वस्थ्य हो या बीमार हर एक व्यक्ति जंगल जाता है.आश्चर्य की बात यह है कि जंगल जाने के दौरान घरों में चोरी जैसी घटनाएं भी सामने नहीं आती हैं.नौरंगिया की तरह ज़िले के अन्य थरुहट क्षेत्रों में भी ऐसी प्रथाएं प्रचलित है. एक अरसे से यहां के लोग पूरी श्रद्धा के साथ इस परम्परा को निभाते आ रहे हैं.

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