न सड़ती न घुन लगती, इससे बने घर के आगे सीमेंट की मजबूती भी फेल, नहीं आती दरार

महुआ के फायदे: जब बात मजबूत घरों की होती है, तो आज भी छतरपुर जिले के ग्रामीण इलाके महुआ लकड़ी का उदाहरण देते हैं. इस पेड़ के फल से जहां स्वादिष्ट व्यंजन बनते हैं, वहीं इसकी लकड़ी गांवों में पक्के और टिकाऊ मकानों की रीढ़ साबित हुई है. यह सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि एक आजमाई हुई तकनीक है.

500 साल पुराना घर आज भी खड़ा है, महुआ की लकड़ी का कमाल
नेगुवां गांव में स्थित एक ऐतिहासिक घर, जो करीब 500 साल पुराना है, आज भी अपनी मजबूती से लोगों को हैरान कर रहा है. गांव के बुज़ुर्गों के अनुसार, जब गांव की नींव पड़ी थी, तभी यह घर, एक कुआं और राम-जानकी मंदिर बनाया गया था. घर की खास बात यह है कि इसमें 365 महुआ लकड़ियों की करी (बीम) का इस्तेमाल हुआ, जो आज भी जस की तस मौजूद हैं.

गाटर-चीप और सीमेंट के बिना बना था दोहरा खंड
500 साल पहले जब आधुनिक निर्माण सामग्री जैसे गाटर-चीप या सीमेंट का कोई नामोनिशान नहीं था, तब यह दोहरा खंड महुआ की लकड़ी के सहारे बनाया गया. हालांकि, समय के साथ ऊपरी मंजिल क्षतिग्रस्त हो गई, लेकिन नीचे का ढांचा आज भी महुआ लकड़ी के सहारे खड़ा है. कमरों में दरवाजे और बीम आज भी मजबूत हालत में हैं.

महुआ लकड़ी की खासियत: सड़ती नहीं, घुन नहीं लगता
इस लकड़ी की सबसे बड़ी खूबी है कि इसमें घुन या दीमक नहीं लगता. ग्रामीणों के अनुसार, महुआ की लकड़ी बेहद टिकाऊ होती है और बरसों तक सड़ती नहीं. यही वजह थी कि पहले गांवों में अधिकतर घर इसी लकड़ी से बनाए जाते थे. जहां भी महुआ का पेड़ सुलभ होता, वहां इसका उपयोग ज़रूर होता.

आज भी ग्रामीण इलाकों में खड़ा है परंपरा का प्रतीक
छतरपुर के ग्रामीण क्षेत्र आज भी इस परंपरा को सहेज रहे हैं. महुआ के पेड़ अब भी गांवों में देखने को मिलते हैं, और कुछ ग्रामीण इसे घर निर्माण में उपयोग में ला रहे हैं. यह न सिर्फ पारंपरिक ज्ञान का उदाहरण है, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल निर्माण तकनीक की मिसाल भी है.

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