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Janeu Sanskar Bageshwar : ये प्रोसेस लड़के के ‘दूसरे जन्म’ का प्रतीक है, जिसमें वो आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ आगे बढ़ता है. इस संस्कार के बाद बच्चों को कुछ नियम पालन करने पड़ते हैं.

आखिर क्यों बनाया जाता है लड़के को संन्यासी
हाइलाइट्स
- उत्तराखंड में जनेऊ संस्कार के दौरान लड़कों को संन्यासी बनाया जाता है.
- ये परंपरा आध्यात्मिक और नैतिक जिम्मेदारियों से जोड़ती है.
- संस्कार के बाद लड़कों को धार्मिक नियमों का पालन करना होता है.
बागेश्वर. उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में सदियों पुरानी परंपराएं आज भी जीवंत हैं. बागेश्वर जैसे क्षेत्रों में पारंपरिक संस्कारों को बेहद गंभीरता से निभाया जाता रहा है. इन्हीं में से एक जनेऊ संस्कार है, जिसे उपनयन संस्कार भी कहा जाता है. ये संस्कार केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी जरूरी माना जाता है. पर्वतीय क्षेत्रों में इस संस्कार के साथ एक अनोखी परंपरा जुड़ी है. हर लड़के को जनेऊ संस्कार के दौरान एक बार के लिए संन्यासी भी बनाया जाता है.
क्यों इतना जरूरी
बागेश्वर के पंडित कैलाश उपाध्याय Local 18 से बताते हैं कि ये परंपरा केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी धार्मिक आस्था और जीवन-दर्शन है. माना जाता है कि जब लड़का संन्यासी का रूप धारण करता है, तो वह सांसारिक बंधनों से ऊपर उठकर शुद्धता और आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर होता है. कुछ समय का संन्यास इस बात का संकेत है कि जीवन केवल भौतिक सुखों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें आध्यात्मिक उत्तरदायित्व भी हैं. स्थानीय बुजुर्गों का मानना है कि ये प्रक्रिया बच्चे को मानसिक रूप से परिपक्व और जिम्मेदार बनाती है.
दूसरा जन्म
जनेऊ धारण करना स्वयं में एक बड़ा धार्मिक कदम होता है. ये लड़के के ‘दूसरे जन्म’ का प्रतीक है, जिसमें वो आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ जीवन की ओर बढ़ता है. इस संस्कार के बाद बच्चे को वेदपाठ, पूजा-पाठ और धार्मिक नियमों का पालन करने की शिक्षा दी जाती है. जनेऊ धारण करने वाले बच्चे को कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है, जैसे शुद्धता बनाए रखना, रोजाना स्नान करना, धार्मिक आचरण का पालन करना आदि.
एक दिन के लिए बच्चे को संन्यासी बनाना उसे जीवन के मूल्यों से जोड़ने, उनमें अनुशासन और आत्मसंयम लाने का तरीका माना जाता है. ये रिवाज लड़कों को आजीवन धार्मिक और नैतिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है. ये अनोखा रिवाज आने वाली पीढ़ियों को अपनी संस्कृति से जोड़ता है.
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