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British Era Fan in Saharsa: सहरसा के इस्लामिया चौक के रहने वाले मोइउद्दीन राइन के घर के बरामदे पर 80 साल पुराना एक पंखा लगा हुआ है, जो अब भी बेहतर तरीके से काम कर रहा है. यह पंखा 1930 का है और ब्रिटिश इलेक्ट्रॉ…और पढ़ें

सहरसा के इस घर में लगा है 80 साल पुराना ब्रिटिश शासन काल का पंखा
हाइलाइट्स
- सहरसा में 80 साल पुराना ब्रिटिश युग का पंखा अब भी काम कर रहा है.
- पंखे की रिपेयरिंग में सिर्फ कंडेंसर बदला जाता है.
- पंखा 1930 का ब्रिटिश इलेक्ट्रॉनिक वर्क मॉडल है.
सहरसा. क्या आपने कभी 80 साल पुराना ब्रिटिश जमाने का पंखा देखा है? अगर नहीं, तो आज हम आपको लोकल 18 की इस खास रिपोर्ट के माध्यम से दिखाने जा रहे हैं. जिस पंखे की चर्चा हम इस रिपोर्ट में कर रहे हैं, वह आज भी बेहतर तरीके से काम कर रहा है और ठंडी हवा दे रहा है. यह सुनकर आपके मन में सवाल जरूर आएगा कि भला 80 साल पुराना पंखा अच्छे तरीके से कैसे काम कर रहा है.दरअसल, सहरसा से एक अजब-गजब तस्वीर सामने आई है.
सहरसा के इस्लामिया चौक के रहने वाले मोइउद्दीन राइन के घर के बरामदे पर 80 साल पुराना एक पंखा लगा हुआ है, जो अभी भी बेहतर तरीके से काम कर रहा है. पंखे का ढांचा काफी अलग है और यह पंखा 1930 का है. यह ब्रिटिश इलेक्ट्रॉनिक वर्क मॉडल का बताया जा रहा है.
दादा के समय से लगा हुआ है पंखा
मोइउद्दीन ने लोकल 18 को बताया कि उनकी उम्र 40 से अधिक है और तब से इस पंखे को देख रहे हैं. यह पंखा दादा के समय से लगा हुआ है और पिता ने इसे संभाल कर रखा है. आज भी यह पंखा ठंडी हवा देता है और गर्मी से राहत मिलती है. इस पंखे के सामने बड़े-बड़े ब्रांड के पंखे भी फेल हैं. बाहर से जब भी घर में प्रवेश करते हैं, तो कुछ देर इस पंखे के पास जरूर बैठते हैं और ठंडी हवा लेते हैं. यह पंखा जो कोई देखता है, दंग रह जाता है. पंखे का ढांचा इस तरह बना हुआ है कि लोग ताज्जुब करते हैं. ब्रिटिश जमाने का यह पंखा आज भी उसी अंदाज में चलता है.
रिपेयरिंग के नाम पर सिर्फ बदलते हैं कंडेंसर
मोइउद्दीन ने बताया कि इस पंखे में अब तक किसी प्रकार की कोई खराबी नहीं आई है. सिर्फ पर्व-त्यौहार पर पंखे पर रंग-रोगन का काम करवाया जाता है. रिपेयरिंग के नाम पर हर साल सिर्फ कंडेंसर बदला जाता है. कोई मेहमान जब दरवाजे पर आकर इस पंखे की हवा लेते हैं, तो एक सवाल जरूर आता है कि आखिर यह पंखा कब का है. जब भी इस पंखे को देखते हैं, तो हमारे पूर्वजों की याद आती है और यह महसूस होता है कि उनका धरोहर आज भी हमारे दरवाजे पर मौजूद है.
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