इंसानी दांतों का इतिहास खोज रहे थे साइंटिस्ट्स, खुला चौंकाने वाला राज, और ही उपयोग करते थे पुराने जीव उनका!

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शिकागो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों पुराने जानवरों के कंकालों का अध्ययन करते हुए इंसानी दातों पर चौंकाने वाला खुलासा किया है. उन्हें पता चला है कि दांतों के अंदरूनी परत पुराने जानवरों चबाने का नहीं कुछ और ही का…और पढ़ें

इंसानी दांतों का इतिहास पर खुला नया राज, और ही उपयोग करते थे पुराने जीव उनका!

हैरानी की बात है कि करोड़ों साल पहले इंसान के पूर्वज जीव दातों को इस्तेमाल किसी और काम के लिए करते थे. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)

हाइलाइट्स

  • शिकागो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने दांतों पर शोध किया
  • दांतों की आंतरिक परत पहले मछलियों में संवेदी उपकरण थी
  • डेंटाइन का उपयोग मछलियों को पानी में हलचल महसूस करने में होता था

इंसान को जैविक तौर पर विकसित होने में करोड़ों साल लगे थे. वैसे तो इंसान के धरती पर आए कुछ लाख साल ही हुए हैं, लेकिन उसके विकास की प्रक्रिया की नीव जीवन की शुरुआत से ही मानी जाती है. वैज्ञानिक यह भी पता लगाने का प्रयास करते रहते हैं.मानव की हर अंग सबसे पहले किस जीव में विकसित हुआ था और बाद में किस तरह से आकार लेता हुआ आज के हाल में पहुंच सका? विकास के इस क्रम को जान कर वैज्ञानिकों इंसानों के भी कई तरह के रहस्य जानने की कोशिश करते हैं इंसानो के दांतों के इतिहास पर वैज्ञानिकों ने एक रोचक खुलासा किया है. उनका दावा है कि दातों की अंदरूनी परत, जो संवेदनशीलता के जानी जाती है उसका प्राचीन मछलियों में एक अलग ही काम के लिए विकास हुआ था.

चबाने के काम नहीं आते थे दांत?
जी हां पहले ये दांत मछलियों में विकसित हुए और भी उनके वंशजों और उनसे पनपी नई प्रजातियों के आते आते इंसानों तक दातों ने आज का आकार और कार्यशैली अपनाई थी. शिकागो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 46.5 करोड़ साल पुराने जीवाश्मों का अध्ययन कर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है. हमारे दांतों की आंतरिक परत पहले प्राचीन मछलियों में एक अलग काम के लिए विकसित हुई थी. दांतों की इस आंतरिक परत को डेंटाइन कहते हैं. उस ऑर्डोविशियन काल में डेंटाइन का उपयोग चबाने के लिए नहीं होता था.

क्या काम था डेंटाइन का?
आपको जान कर अजीब लगेगा, लेकिन डेंटाइन काम मछलियों को पानी में हलचल और बदलाव महसूस करने में मदद करना था. प्राचीन मछलियों के बाहरी कवच में डेंटाइन की परत थी जो दांत नहीं, बल्कि संवेदी उपकरण थे. ये मछलियों को उनके आसपास के खतरे को समझने में मदद करते थे. यह आज के जानवरों की त्वचा या एंटीना की तरह काम करता था.

वैज्ञानिकों को कहना है कि पुराने समय में मछलियां दातों को इस्तेमाल पानी की हलचल पहचानने के लिए करती थीं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Shutterstock)

दोनों तरह के जानवरों में ऐसे गुण
वैज्ञानिकों ने और भी पुराने जीवाश्मों का अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि रीढ़ वाले और बिना रीढ़ वाले जानवरों ने अलग अलग यह कवच विकसित किया. उन्होंने पाया कि पुराने समय की मछलियां इस कवच का इस्तेमाल अपनी रक्षा करने के करती थीं. और शोधकर्ताओं ने ऐसा रीढ़ और बिना रीढ़ दोनों तरह के जानवरों में पाया.

दांत कैसे पैदा हुए और पनपे?
यह अध्ययन दांत कैसे पैदा हुए, यह समझने के लिए नया नजरिया देता है. दांतों की पैदाइश के दो सिद्धांत हैं. एक कहता है कि दांत पहले मुंह में बने और फिर कवच पर आए. दूसरा कहता है कि वे पहले बाहरी संवेदी ढांचे थे, जो बाद में दांत बने. नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ यह अध्ययन दूसरे सिद्धांत का समर्थन करता है.

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यानी पहले जानवरों में डेंटाइन पनपे. इनका काम आसपास की हलचलों की पहचान करना था.  बाद में इनसे चबाने का काम लिया जाने लगा और धीरे धीरे यही मुख्य काम होता चला गया. शोधकर्ताओं ने यह सब कैसे हुआ इसका लेखा जोखा जुटाया और पुराने समय के जानवरों के दांतों या उनके जैसे अंगों की हाल के आंकड़े जुटाए. जाहिर है, आज के इंसानों के दांतों से यह पता लगाना नाममुकिन है कि कभी इनसे दूसरी तरह का काम भी लिया जाता रहा होगा!

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Vikas Sharma

As an exclusive digital content Creator, specifically work in the area of Science and technology, with special interest in International affairs. A civil engineer by education, with vast experience of training…और पढ़ें

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