Viral News: बीमार बताकर 2 साल तक ऑफिस मत जाइए, मिलती रहेगी 70% सैलरी, जानिए कहां मिलती है यह सुविधा

नई दिल्ली (Viral News, Dutch Civil Code). सोशल मीडिया पर एक पोस्ट जबरदस्त वायरल हो रहा है. फेसबुक से लेकर इंस्टाग्राम और लिंक्डइन तक, हर जगह यूरोप के एक देश की चर्चा हो रही है. जहां ज्यादातर एंप्लॉइज मात्र 1 दिन की छुट्टी मैनेज करने के लिए भी परेशान हो जाते हैं, वहीं यूरोप में बसा नीदरलैंड 2 साल तक की छुट्टी देने के लिए तैयार है.. और वो भी 70 प्रतिशत सैलरी के साथ! बिना काम के इतनी सैलरी मिल रही हो तो छुट्टी लेने में क्या हर्ज है.

यह खबर सुनने में जितनी आकर्षक लगती है, उतने ही सवाल भी खड़े करती है. इसे समझने के लिए आपको यह पता होना चाहिए कि ऐसी सुविधा आमतौर पर किसी देश की सरकारी नीतियों या प्राइवेट कंपनियों की पॉलिसी का हिस्सा हो सकती है. इस खबर ने सोशल मीडिया और न्यूज प्लेटफॉर्म्स पर तहलका मचा दिया है. नीदरलैंड की सरकार और कंपनियां अपने कर्मचारियों की सेहत और आर्थिक सुरक्षा को लेकर बहुत गंभीर हैं. जानिए नीदरलैंड की सिक पे स्कीम क्या है (Sick Pay Scheme).

नीदरलैंड की सिक पे स्कीम क्या है?

नीदरलैंड में बीमार कर्मचारियों के लिए एक खास स्कीम है, जिसे ‘सिक पे स्कीम’ कहा जाता है. इसके तहत, अगर कोई कर्मचारी बीमारी की वजह से काम पर नहीं जा पाता तो उसे 2 साल तक अपनी सैलरी का कम से कम 70% हिस्सा मिलता है. यह नियम वहां के डच लेबर लॉ (Dutch Labour Law) का हिस्सा है. पहले साल में यह राशि मिनिमम वेज से कम नहीं हो सकती लेकिन दूसरे साल में यह शर्त लागू नहीं होती है. कई कंपनियां पहले साल में 100% सैलरी देती हैं.

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यह सुविधा किसे मिल सकती है?

यह सुविधा नीदरलैंड में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को मिलती है, चाहे वे परमानेंट हों या टेम्पररी कॉन्ट्रैक्ट पर हों. अगर आपकी नौकरी का कॉन्ट्रैक्ट बीमारी के दौरान खत्म हो जाता है तो आपकी सैलरी भले रुक जाए, लेकिन आप Employee Insurance Agency से सिकनेस बेनिफिट ले सकते हैं. खास परिस्थितियों में, (जैसे प्रेगनेंसी, चाइल्डबर्थ या ऑर्गन डोनेशन) कर्मचारी को 100% सैलरी मिलती है. ऑन-कॉल या जीरो-आवर कॉन्ट्रैक्ट वाले कर्मचारियों को भी यह सुविधा मिलती है.

माननी पड़ेंगी ये शर्तें!

इस स्कीम का फायदा उठाने के लिए कुछ शर्तें तय की गई हैं. कर्मचारी को अपनी बीमारी की सूचना पहले दिन ही कंपनी को देनी होती है. फिर कंपनी डॉक्टर से कर्मचारी की सेहत का आकलन करवाती है. कर्मचारी को भी रिकवरी और रीइंटीग्रेशन (काम पर वापसी) की प्रक्रिया में सहयोग करना होता है. अगर वह सहयोग नहीं करता है तो कंपनी सैलरी रोक सकती है. वहीं, कंपनी की जिम्मेदारी है कि वह कर्मचारी को काम पर वापस लाने के लिए हर संभव कोशिश करे, जैसे हल्का काम देना या दूसरी भूमिका देना.

2 साल बाद क्या होता है?

अगर 2 साल बाद भी कर्मचारी ठीक नहीं होता है तो कंपनी की सैलरी देने की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है. इसके बाद कर्मचारी यूडब्ल्यूवी (Employee Insurance Agency) से डिसएबिलिटी बेनिफिट (WIA) के लिए अप्लाई कर सकता है. हालांकि, अगर यूडब्ल्यूवी को लगता है कि कंपनी ने कर्मचारी की वापसी के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं की है तो सैलरी देने की अवधि बढ़ाई जा सकती है. यह सिस्टम कर्मचारी और कंपनी दोनों के लिए संतुलित है.

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भारत में ऐसी स्कीम क्यों नहीं है?

भारत में ऐसी स्कीम की कल्पना करना मुश्किल है. हमारे देश में सरकारी कर्मचारियों को मेडिकल लीव मिलती है, लेकिन प्राइवेट सेक्टर में यह कंपनी की पॉलिसी पर निर्भर करता है. ज्यादातर जगहों पर लंबी बीमारी में सैलरी रोक दी जाती है. नीदरलैंड की तरह सिस्टम लागू करने के लिए भारत को पहले अपने लेबर लॉज में बड़े बदलाव करने होंगे. साथ ही, पारदर्शिता और सख्त निगरानी की जरूरत होगी ताकि इसका गलत इस्तेमाल न हो सके.

फाइनेंशियल सिक्योरिटी के लिए अच्छी स्कीम

नीदरलैंड की यह स्कीम कर्मचारियों को आर्थिक सुरक्षा देती है, जिससे वे बिना तनाव के अपनी सेहत पर ध्यान दे सकते हैं. लेकिन कुछ लोग इसे गलत फायदा उठाने की संभावना भी मानते हैं. छोटी कंपनियों के लिए यह स्कीम बोझ भी बन सकती है. फिर भी यह स्कीम एक मिसाल है कि कैसे कर्मचारियों की सेहत और वित्तीय सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा सकती है. भारत जैसे देशों को भी इससे सीख लेने की जरूरत है ताकि कर्मचारियों को बेहतर सपोर्ट मिल सके.

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