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Masroor Rock Cut Temple: हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित मसरूर रॉक कट टेंपल घूमने के साथ-साथ अध्यात्म की नजर से भी बेहद महत्वपूर्ण स्थल है. यह मंदिर एक ही बलुआ पत्थर की चट्टान से बना है.

मसरूर रॉक कट मंदिर, जिसे अक्सर “हिमाचल प्रदेश का एलोरा” कहा जाता है. प्राचीन भारतीय रॉक-कट वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है.हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में स्थित, यह मंदिर परिसर 8वीं शताब्दी का है और हिंदू देवताओं राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पित है.

मसरूर मंदिर एक ही बलुआ पत्थर की चट्टान से बना है और यह प्रारंभिक मध्ययुगीन उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला का एक उल्लेखनीय उदाहरण है. मंदिर परिसर में चट्टान से 19 मंदिर बनाए गए हैं. जो एक आयताकार जल तालाब के चारों ओर व्यवस्थित हैं, जो इसके शांत जल में मंदिरों की जटिल नक्काशी को दर्शाते हैं. यह 18वीं शताब्दी की शैली में बनाए गए हैं.

मसरूर मंदिर की स्थापत्य शैली नागर और द्रविड़ दोनों परंपराओं से प्रभावित है, फिर भी यह अपने निष्पादन में अद्वितीय है.मंदिर का बाहरी हिस्सा विभिन्न देवताओं, पौराणिक दृश्यों और पुष्प पैटर्न को दर्शाती बारीक विस्तृत मूर्तियों और जटिल नक्काशी से सुसज्जित है.

अपनी भव्यता के बावजूद, मंदिर कुछ हद तक अलग-थलग है.सदियों से, इसने प्राकृतिक आपदाओं को झेला है, जिसमें 1905 का विनाशकारी कांगड़ा भूकंप भी शामिल है, जिसने काफी नुकसान पहुंचाया था.

मसरूर रॉक कट मंदिर का सबसे लुभावना पहलू इसकी स्थापना है.लगभग 2,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित, यह आसपास के धौलाधार रेंज के मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है.मंदिर का शांत वातावरण, इसकी समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ मिलकर इसे हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर माना जाता है.

हाल के वर्षों में, मसरूर मंदिर को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के प्रयास किए गए हैं जो लोग यहां आते हैं, उनके लिए यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है, बल्कि उस युग में वापस ले जाता है जब कलात्मकता और भक्ति पत्थरों में गुंथी हुई थी.

यह प्रारंभिक मध्ययुगीन उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला का एक उल्लेखनीय उदाहरण है. मंदिर परिसर में एक ही चट्टान को काटकर 19 मंदिर बनाए गए हैं. इस मंदिर में प्रभु श्री राम और माता सीता की मूर्तियां पाई स्थापित हैं. हालांकि, 1905 में कांगड़ा में आए भूकंप में ये मंदिर क्षतिग्रस्त हो गए थे. अब भी यहां कुछ मंदिर मौजूद है और इसे हैरिटेज का दर्जा दिया गया है. बड़ीं संख्या में टूरिस्ट यहां आते हैं. पुरातत्व विभाग इनकी देखरेख करता है और टिकट के बाद ही मंदिर परिसर में एंट्री मिलती है.
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