जिस घर की तुलसी भी डरती है…
छतरपुर जिले के महाराजपुर तहसील के एक छोटे से गांव नेगुआ में एक 700 साल पुराना मकान आज भी खड़ा है पर वीरान और सन्नाटे से भरा हुआ. कभी यह गांव की सबसे भव्य हवेली थी, जिसे स्थानीय लोग “बड़ी बखरी” कहते हैं. अब इसे कहते हैं “भूत महल”.
गांव वालों का दावा है कि इस घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास है. वहां रहने वाले परिवार को संतान नहीं होती, और जो भी इस मकान में रहने आता है, कुछ न कुछ अनहोनी जरूर होती है.
तीन धरोहरें और एक खंडहर
गांव की शुरुआत में बने तीन मुख्य केंद्र थे एक प्राचीन कुआं, एक राम-जानकी मंदिर और यही बड़ी बखरी. समय बीतता गया, मंदिर में पूजा जारी रही, कुएं से पानी निकला… लेकिन बखरी खंडहर बन गई.
ग्रामीण संतलाल पंडित कहते हैं कि इस घर में औरतें उल्टी लटकी दिखती हैं. रात में बच्चे की आवाजें आती हैं.
मठ्ठा मांगता भूत और घर का त्याग
इस घर की पूर्व मालिक सविता दुबे बताती हैं कि वे लगभग 30 साल पहले यहां परिवार के साथ रहती थीं.
“एक रात मुझे एक छोटा बच्चा दिखा, जो मुझसे मठ्ठा मांग रहा था… वह अचानक कमरे में चला गया. मैंने किसी से कुछ नहीं कहा. फिर हमारी संतान नहीं हुई. लोग बोले कि यहां ‘कुछ है’. डर इतना बढ़ा कि हमने घर ही छोड़ दिया.”
मीडिया भी लौटा उल्टे पांव
गांव वालों के अनुसार, एक बार एक मीडिया टीम इस घर की सच्चाई जानने पहुंची थी. लेकिन टीम के सदस्यों को कुछ ऐसा महसूस हुआ कि वे बीच में ही वापस लौट आए. ग्रामीणों का कहना है कि घर के आंगन में झाड़-झंखाड़ हैं, लेकिन एक पुराना तुलसी घर आज भी वैसा का वैसा खड़ा है.
कत्ल, दफन और खजाने की कहानी
गांव का एक युवक कहता है कि इस घर में कई लोगों का कत्ल हुआ था. उन्हें इसी आंगन में दफना दिया गया. उन्हीं की आत्माएं यहां भटकती हैं. कुछ लोग दावा करते हैं कि यहां धन भी गड़ा हुआ है. कई बार लोग खुदाई करने आए लेकिन नाकाम लौटे.
न्यूज़18 टीम की आंखों देखी
जब हमारी टीम गांव में पहुंची, तो सबसे पहले सामने आया एक पुराना दरवाजा. उस पर मोटे अक्षरों में लिखा था “भूतों से सावधान”. भीतर गए तो दो मंजिला खंडहर दिखाई दिया. कमरे टूटे हुए, आंगन में उगी झाड़ियां, और हवाओं में एक अनकही सरसराहट….
गांव के लोग कहते हैं “ये बस घर नहीं, श्राप है”
आज भी इस घर से गांव वालों की धार्मिक दूरी बनी हुई है. बच्चे पास नहीं जाते, और बुज़ुर्ग हर नई पीढ़ी को इस घर से दूर रहने की हिदायत देते हैं. कुछ इसे सांस्कृतिक शाप, तो कुछ अतीत का बदला मानते हैं.
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