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एक अनोखी रिसर्च में पाया गया है कि कुत्तों की नस्ल प्वाइंटिंग डॉग्स की नाक का आकार से इंसानी विकार के इलाज में मददगार हो सकता है. उन्होंने पाया है कि इससे इंसानों में पैदाइशी विकार ओरोफेसियल क्लेफ्ट का इलाज संभ…और पढ़ें

इस विकार में इंसान की नाक एक कुत्ते की नाक जैसी फटी हो जाती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
हाइलाइट्स
- कुत्तों की नाक का आकार इंसानी विकार का इलाज कर सकता है
- पीडीजीएफआरए जीन में बदलाव से समाधान की उम्मीद
- प्वाइंटिंग डॉग्स की नाक का आकार महत्वपूर्ण
क्या कुत्ते की नाक का आकार इंसानों के काम आ सकता है? क्या ये आकार इंसानों के बच्चों की पैदाइश के समय उनकी किसी समस्या को सुलझा सकता है? एक स्टडी में वैज्ञानिकों को ऐसी ही उम्मीद की किरण दिखाई दी है. बच्चों में होने वाले पैदाइशी विकार के इलाज की उम्मीद उन्हें कुत्ते की एक नस्ल में दिखाई दी है जिसकी नाक का खास तरह का आकार होता है. वैज्ञानिकों ने पाया है कि इस नस्ल के कुत्तों की जीन का अध्ययन के आधार पर वे इंसानों के इस विकार का इलाज कर सकते हैं.
क्या है ये विकार?
कई बार कुछ बच्चे जन्म के समय ही विकृत नाक के साथ पैदा होते हैं. उनकी नाक और होठ के बीच का हिस्सा अलग अलग सा दिखता है और इसके लिए एक अनुवांशिकी और एक खास तरह की जीन्स जिम्मेदार है. इस तरह के आकार बनने को ओरोफेसियल क्लेफ्ट या बिफिड नोज़ कहते हैं. वैज्ञानिकों ने पाया कि पीडीजीएफआरए जीन भ्रूण के विकास के दौरान चेहरे के उन ऊतकों को जोड़ने में अहम भूमिका निभती है जो होंठ और नाक के बीच के हिस्से को बनाने के लिए जिम्मेदार होते हैं.
एक शिकारी कुत्ते की नस्ल
क्लेफ्ट या बिफ्ट नोज़ इंसानों में ही नहीं कुत्तों में भी कभी कभी दिखती है. लेकिन एक शिकारी कुत्ते में ऐसी नाक कुदतरी तौर पर दिखाई देती है. प्वाइंटिंग डॉग्स की नाका पिछले सैकड़ों सालों से यूरोप में ऐसी ही देखी जा रही है. विश्लेषण में पाया गया है कि कुत्तों के नाक के अलग-अलग और क्लेफ्ट नोज़ की तरह दिखने के लिए जिम्मेदार वहीं जीन जिम्मेदार है, जो इंसानों मे क्लेफ्ट नोज़ बनाने के लिए जिम्मेदार है.

यह विकार इंसान के पैदा होने से पहले ही पनपना शुरू हो जाता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
हो सकता है चमत्कार
वैज्ञानिकों का मनाना है कि पीडीजीएफआरए जीन में थोड़ा सा बदलाव चमत्कार कर सकता है. केटीएप रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के पीटर सावोलेनिन का कहना है कि इस विषय में गहन अध्ययन इस समस्या का समाधान दे सकता है. लैब में जानवरों पर किए गए अध्ययन बताते हैं कि इस जीन में गड़बड़ी मुंह और नाक के जुड़ी संरचना में दखल देने का काम करते हैं.
कई होते है इसके कारण
शोधकर्ता यह जानना चाहते हैं क्या इंसानों में भी इस तरह के जीन स्तर पर बदलाव कैसे नतीजे देंगे और कहीं इससे गड़बड़ी का ज्यादा जोखिम तो नहीं निकलेगा. वैज्ञानिक मानते हैं कि चेहरे पर पीडीजीएफआरए जीन में कई म्यूटेशन चेहरे पर यह प्रभाव दे सकते हैं. इंसानों में ओरोफेसियल क्लेफ्ट्स के पीछे अनुवांशिकी के अलावा पर्यावरण संबंधी कारण भी बताए जाते हैं.

यूरोप में सैकड़ों सालों से इन कुत्तों की नाक फटी हुई दिखाई देती आ रही है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
जेनेटिक्स में मिल सकता है रास्ता
सावोलेनिन कहते हैं कि यह अध्ययन बताता है कि कुछ मामलों में इसके पीछे जीन हो सकती है.जीनोम रिसर्च में प्रकाशित अध्ययन के शोधकर्ताओं के मुताबिक, अमेरिका में हर 1600 में से एक बच्चे में इस तरह का विकार देखने को मिलता है. वे मानते हैं कि प्वाइंटिंग डॉग्स का वंश साफ तौर पर बताता है कि इसे रोकने या इसका इलाज अनुवांशिकी तरीके से हो सकता है.
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गौरतलब है कि इंसानों और कुत्तों के डीएनए के कई हिस्सों में समानताएं पाई गई हैं. पहले भी एक अध्ययन में दोनों में मोटापे से संबंधित समान जीन्स पाए गए हैं. पहले भी कई रोग के जोखिम और बालों के रंग जैसी बड़ी खोज कुत्तों के जरिए हो चुकी हैं. इसलिए कुत्तों और इंसानों के जीनोम का तुलनात्मक अध्ययन कई रास्ते निकाल सकता है.

As an exclusive digital content Creator, specifically work in the area of Science and technology, with special interest in International affairs. A civil engineer by education, with vast experience of training…और पढ़ें
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