खरगोश या बत्तख, पहले क्या दिखा? वैज्ञानिकों ने बताई ऑप्टिकल इल्यूजन की सच्चाई

उम्र चाहे जो हो, दिमाग की चालाकी और नजर का जादू हर किसी को हैरान कर सकता है. कई लोग तस्वीरों को देखकर फटाफट राय बना लेते हैं, लेकिन कुछ तस्वीरें ऐसी होती हैं जो दिमाग को उलझा देती हैं. आज हम आपको एक ऐसे ऑप्टिकल इल्यूजन के बारे में बताने जा रहे हैं, जो 1892 से लोगों को चकमा दे रहा है. खरगोश है या बत्तख? यह सवाल आपकी पर्सनैलिटी के बारे में क्या कहता है? सोशल मीडिया पर इसके दावों ने धूम मचा रखी है, लेकिन वैज्ञानिकों ने इनकी असलियत सामने लाकर सबको चौंका दिया है. वैज्ञानिकों ने एक स्टडी करके खुलासा किया है कि इस ऑप्टिकल इल्युजन में सबसे पहले नजर आए जीवों से जुड़ा आपका जवाब आपके बारे में क्या कहता है.

बता दें कि 1892 में एक अनजान जर्मन कलाकार ने इस खरगोश-बत्तख इल्यूजन को बनाया, जो आज भी लोगों को दो खेमों में बांट देता है. कुछ को तस्वीर में बत्तख दिखता है, तो कुछ को खरगोश. सोशल मीडिया पर दावा है कि अगर आप पहले बत्तख देखते हैं, तो आप खुशमिजाज और इमोशनली स्टेबल हैं. लेकिन अगर खरगोश पहले दिखता है, तो आप काम टालने वाले यानी प्रोक्रास्टिनेटर हैं. ये दावे इतने वायरल हुए कि लोग इस तस्वीर से अपनी पर्सनैलिटी का अंदाजा लगाने लगे. लेकिन क्या इनमें कोई सच्चाई है? यूनिवर्सिटी ऑफ हर्टफोर्डशायर के साइकोलॉजिस्ट रिचर्ड वाइजमैन ने इसकी जांच की और हैरान करने वाला सच सामने लाया. तब तक आप फिर से एक बार नीचे दिए गए फोटो को देखकर बताएं कि आपको सबसे पहले क्या दिखा?

वायरल हो रहे इस ऑप्टिकल इल्यूजन की सच्चाई को लेकर रिचर्ड वाइजमैन और एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी की कैरोलिन वॉट ने 18 से 79 साल के 300 लोगों पर स्टडी की. उन्होंने सभी को चार मशहूर ऑप्टिकल इल्यूजन्स ‘खरगोश-बत्तख, रुबिन्स वेस, यंगर-ओल्डर वुमन और हॉर्स-सील’ दिखाए. हर तस्वीर में लोगों ने बताया कि उन्हें सबसे पहले क्या दिखा- जैसे बत्तख, खरगोश, या कुछ और? फिर उन्होंने पर्सनैलिटी और सोचने के तरीके पर सवाल पूछे, जैसे खुशमिजाजी, काम टालना, बारीकी से सोचना या फैसले लेना. नतीजों ने सोशल मीडिया के दावों को पूरी तरह गलत साबित कर दिया. ज्यादातर लोगों को खरगोश की बजाय बत्तख पहले दिखा. लेकिन स्टडी में पाया गया कि बत्तख देखने का खुशमिजाजी या इमोशनल स्टेबिलिटी से कोई लेना-देना नहीं है, न ही खरगोश देखने वालों का काम टालने की आदत से कोई संबंध है. वाइजमैन ने इसे “दिमागी भ्रम” बताया, यानी ऐसा दावा जो सच लगता है, लेकिन सबूतों से खाली है.

वाइजमैन ने कहा, “सोशल मीडिया पर ये दावे बहुत मशहूर हैं, लेकिन इनके पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.” बता दें कि वाइजमैन की स्टडी ने साफ कर दिया कि ये इल्यूजन्स मजेदार हैं, लेकिन पर्सनैलिटी टेस्ट नहीं. अगर आपने बत्तख देखी या खरगोश, तो इसका मतलब सिर्फ इतना है कि आपका दिमाग अनोखे ढंग से काम करता है. निराश होने की जरूरत नहीं, क्योंकि हर दिमाग खास है. 1892 से चला आ रहा यह इल्यूजन आज भी उतना ही हैरान करने वाला है. ऐसे दिमागी खेल दिमाग के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स को सक्रिय करते हैं, जो सोचने, फैसले लेने और फोकस करने का केंद्र है. रिसर्च बताती है कि ब्रेनटीजर्स डोपामाइन बढ़ाते हैं, जो याददाश्त, ध्यान और मूड को बेहतर करता है. ये खेल मेमोरी, फोकस और समस्या सुलझाने की ताकत को बढ़ाते हैं और दिमागी कमजोरी को रोकने में मदद करते हैं.

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