Scientists discovered fossils of 3-eyed predator that lived 50 crore years ago – वैज्ञानिकों ने की 3 आंखों वाले ‘राक्षस’ की खोज, कहलाता था समंदर का शिकारी!

समंदर की गहराई में कई ऐसे रहस्य आज भी छुपे हुए हैं, जिनके बारे में हम नहीं जानते. अक्सर वैज्ञानिक समुद्री रहस्यों से जुड़े खोज करते रहते हैं, जिनके बारे में जानकर हैरानी होती है. वैज्ञानिकों ने एक ऐसे ही जीव के बारे में पता लगाया है, जिससे जुड़ी स्टडी हाल ही में रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस में पब्लिश हुई. शोध के अनुसार, जीवाश्म वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि 50 करोड़ साल पहले धरती पर समुद्र के अंदर तीन आंखों वाला एक ऐसा शिकारी जीव रहता था, जिसके कांटेदार पंजे होते थे और मुंह दांतों से भरा था. देखने में ये किसी राक्षसी जीव का अहसास दिलाता है. ये उस दौर की बात है, जब धरती पर जीवन की शुरुआत हो रही थी. इस अनोखे जीव का नाम मोसुरा फेंटोनी है, जो कनाडा के रॉकी पर्वतों में बर्गेस शेल में मिला. मोसुरा कोई मछली नहीं था, बल्कि रेडियोडॉन्ट समूह का हिस्सा था, जो कैम्ब्रियन काल के खूंखार समुद्री शिकारी थे. बता दें कि बर्गेस शेल 1980 से यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है.

मोसुरा फेंटोनी की शक्ल किसी साइंस-फिक्शन फिल्म के प्राणी जैसी है. इसकी लंबाई बस एक उंगली जितनी थी, लेकिन ये छोटा शिकारी बड़ा खतरनाक था. इसकी तीन आंखों में नसों के गुच्छे मिले, जो आज के आर्थ्रोपॉड्स की तरह देखने और समझने में माहिर थे. रॉयल ओंटारियो म्यूजियम के जीन-बर्नार्ड कैरॉन ने कहा, “इन नसों से पता चलता है कि इतने पुराने जीव की आंखें कितनी उन्नत थीं.” इसके कांटेदार पंजे छोटे-छोटे शिकार को जकड़ने के लिए थे और नीचे की तरफ दांतों से भरा गोल मुंह भोजन को चबाने में मदद करता था. इसकी बॉडी में बड़े-बड़े फ्लैप थे, जो पंखों की तरह तैरने में मदद करते थे. इसीलिए इसे “सी मॉथ” यानी समुद्री पतंगा कहा गया. इसका नाम जापानी फिल्मों के मॉथ्रा से प्रेरित है, जो एक विशाल कीड़ा है. ये जीव अब विलुप्त हो चुके हैं, लेकिन इनके दूर के रिश्तेदार आज के कीड़े, मकड़ियां, केकड़े और मिलीपीड हैं.

सबसे बड़ी हैरानी इसका पेट था, जिसमें 16 गलफड़ों वाले हिस्से थे, जो किसी और रेडियोडॉन्ट में नहीं देखा गया. मैनिटोबा म्यूजियम के जो मोइसियुक ने कहा, “ये हिस्सा आज के हॉर्सशू क्रैब, वुडलाइस और कीड़ों से मिलता-जुलता है. ये खोज बताती है कि कैम्ब्रियन काल में समुद्री जीव कितने अलग थे.” इसे “इवॉल्यूशनरी कन्वर्जेंस” कहते हैं, जहां अलग-अलग जीव एक जैसे लक्षण विकसित कर लेते हैं. वैज्ञानिक मानते हैं कि ये गलफड़े शायद कम ऑक्सीजन वाले पानी में सांस लेने या तेज तैरने के लिए थे. बता दें कि रॉयल ओंटारियो म्यूजियम ने 1975 से 2022 के बीच मोसुरा के 61 जीवाश्म इकट्ठे किए. कुछ जीवाश्म इतने साफ हैं कि इनमें पाचन तंत्र, खून की नसें और सर्कुलेटरी सिस्टम दिखता है. इसका सर्कुलेटरी सिस्टम “ओपन” था, जिसमें दिल खून को बड़ी-बड़ी गुहाओं (लैकुने) में भेजता था. ये लैकुने जीवाश्मों में चमकदार धब्बों की तरह दिखते हैं, जो फ्लैप्स तक फैले हैं. मोइसियुक ने कहा, “इन लैकुने ने हमें बाकी जीवाश्मों की बनावट समझने में बड़ी मदद की.”

सोशल मीडिया पर ये खोज लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई है. लोग इसे “एलियन” या “काइजु” बुला रहे हैं. एक यूजर ने कमेंट किया, “ये तो समुद्र का मॉथ्रा है!” कुछ ने मजाक किया, “तीन आंखों वाला शिकारी? ये तो किसी साइ-फाई फिल्म का हीरो है!” कई लोगों ने इसकी तुलना सिम्पसन्स की तीन आंखों वाली मछली ब्लिंकी से की और कहा, “क्या ये ब्लिंकी का दादा-परदादा है?” ये खोज न सिर्फ वैज्ञानिकों, बल्कि आम लोगों को भी रोमांचित कर रही है, जो इस प्राचीन समुद्री जीव की अजीब शक्ल देखकर हैरान हैं. बर्गेस शेल की ये खोज हमें उस दौर की झलक देती है, जब धरती पर जीवन अपने सबसे अनोखे और रहस्यमयी रूपों में उभर रहा था.

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