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भारत में 22 करोड़ साल पुरानी नई प्रजाति के डायनासोर का कंकाल मिला है. मलेरिरैप्टर कुट्टी नाम का यह डायनासोर असल में कुत्ते के आकार है और यह एक खतरनाक शिकारी हुआ करता था. यह मांसाहारी हेररासौरिया समूह का है, जो…और पढ़ें

भारत में हेररासौरिया समूह की प्रजाति का डायनासोर मिलना इतिहास के नए आयाम खोलने वाली खोज मानी जा रही है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
क्या कभी भारत में भी डायनासोर घूमा करते थे? जी हां, कुछ खोजें इसकी पुष्टि तो कर चुकी हैं. पर नई खोज ने इस पर पक्की मुहर लगा दी है. हाल ही में दक्षिण भारत में एक चौंकाने वाली खोज हुआ है डायनासोरों के इतिहास को नया मोड़ दे रही है. तेलंगाना के प्राणहिता-गोदावरी घाटी में, वैज्ञानिकों ने एक नए डायनासोर प्रजाति की खोज की है, जिसका नाम मलेरिरैप्टर कुट्टी है. यह कुत्ते के आकार का मांसाहारी डायनासोर लगभग 22 करोड़ साल पहले ट्रियासिक काल के नोरियन युग में धरती पर घूमता था. यह खोज न केवल भारत के प्रागैतिहासिक अतीत को उजागर करती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि डायनासोरों का दायरा पहले के अनुमानों से कहीं ज़्यादा फेला हुआ था.
कौन सा है ये डायनासोर?
मलेरिरैप्टर कुट्टी हेररासौरिया समूह का हिस्सा है, जो सबसे पुराने मांसाहारी डायनासोरों में से एक माना जाता है. यह छोटा लेकिन शक्तिशाली प्राणी केवल 3.2 फीट ऊँचा और 6.5 फीट लंबा था. लगभग एक ग्रेट डेन जैसे बड़े कुत्ते के आकार का. अर्जेंटीना के नेचुरल साइंस म्यूज़ियम के डॉ. मार्टिन एज़कुरा ने कहा, “हेररासौर डायनासोरों की सबसे पुरानी शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं.” यह प्रजाति तेज़ और फुर्तीली थी, जो छोटे सरीसृपों और प्रारंभिक आर्कोसौरों का शिकार करती थी. इसकी मजबूत पूँछ और दो पैरों की संरचना इसे एक कुशल शिकारी बनाती थी.
कहा मिला इसका कंकाल?
इस डायनासोर की जीवाश्म हड्डियाँ 1980 के दशक में तेलंगाना के अन्नाराम गाँव के पास ऊपरी मलेरी संरचना में मिली थीं. उस समय, वैज्ञानिकों को यह नहीं पता था कि ये हड्डियाँ किस प्रजाति की हैं. लेकिन 2025 में, डॉ. मार्टिन एज़कुरा और उनकी टीम ने इन हड्डियों का विस्तृत अध्ययन किया और इसे मलेरिरैप्टर कुट्टी के रूप में नामित किया. इसका नाम ऊपरी मलेरी संरचना और इसके खोजकर्ता टी. एस. कुट्टी के सम्मान में रखा गया है. यह खोज रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है.
कंकाल के अध्यनन से पता चला कि मलेरिरैप्टर कुट्टी कुत्ते के आकार का शिकारी जानवर हुआ करता था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
भारत में भी घूमा करते थे ये जानवर
पहले, हेररासौरिया के जीवाश्म केवल जैसे अर्जेंटीना और ब्राज़ील की इस्चिगुआलास्तो और कैंडेलारिया संरचनाओं में मिले थे. लेकिन मलेरिरैप्टर कुट्टी की खोज ने साबित किया कि ये डायनासोर गोंडवाना महाद्वीप के अन्य हिस्सों, विशेष रूप से भारत में भी मौजूद थे. यह पहला पक्का सबूत है कि हेररासौर 227-220 मिलियन साल पहले हुए एक बड़े विलुप्ति संकट से बचे, जिसमें राइनकोसौर जैसे कई शाकाहारी सरीसृप विलुप्त हो गए.
मौसम था वजह
वैज्ञानिकों का मानना है कि भारत में इन डायनासोरों के लंबे समय तक जीवित रहने का कारण वहाँ का मौसम हो सकता है. नोरियन युग में भारत का पेलियो-मौसम दक्षिणी उत्तरी अमेरिका के समान था, जो हेररासौर और अन्य प्रजातियों जैसे फाइटोसौर और मलेरिसौरिन एलोकाटोसौर के लिए अनुकूल था.
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यह खोज डायनासोरों के शुरुआती विकास और उनके वैश्विक वितरण को समझने में एक महत्वपूर्ण कड़ी है. मलेरिरैप्टर कुट्टी की खोज भारत के प्रागैतिहासिक इतिहास को नई रोशनी देती है. यह सवाल उठता है कि क्या भारत में और भी ऐसे रहस्य छिपे हैं? क्या ये छोटे शिकारी डायनासोर और बड़े रहस्यों की ओर ले जाएँगे? यह खोज बेशक वैज्ञानिकों और डायनासोर प्रेमियों को उत्साहित कर रही है, जो प्राचीन गोंडवाना की दुनिया में एक नई झलक देती है.

As an exclusive digital content Creator, specifically work in the area of Science and technology, with special interest in International affairs. A civil engineer by education, with vast experience of training…और पढ़ें
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