सालों पहले बना था सुरंगों का जाल, जिसे बनाते-बनाते मर गए 5 हजार मज़दूर, आज भी अनसुलझा है इसका रहस्य!

सुरंगें तरक्की के लिए बनाई जाती हैं. वे कठिन भूभाग से रास्ता निकालने का जरिया हुआ करती हैं. पर पुराने जमाने में इन्हें गुप्त रूप से बच कर निकलने या फिर किसी गोपनीय जगह पर जाने के लिए बनाया जाता था. इसी लिए सुंरगों को अक्सर रहस्यों से जोड़ा जाने लगता है.  पर कुछ सुरंगों के साथ बहुत सी कहानियां जुड़ जाती हैं. पोलैंड की उल्लू पहाड़ियों में रीज़े की सुरंगें कुछ ऐसी ही हैं. आज, ये सुरंगें दक्षिण-पश्चिम पोलैंड में एक पर्यटन स्थल बन चुकी हैं, लेकिन इनका असली मकसत क्या है यह 8 दशक गुजरने के बाद आज भी रहस्य ही है.

एक बहुत ही बड़ा प्रोजेक्ट
प्रोजेक्ट रीज़े नाज़ी जर्मनों का एक गुप्त लेकिन बहुत ही बड़ा प्रोजेक्ट था. यह विशाल भूमिगत परिसर 1943 में शुरू हुआ था नाज़ी शासन ने इसे बनाने के लिए ग्रॉस-रोसेन कंसन्ट्रेशन कैंप से हजारों कैदियों को जबरन मजदूरी के लिए लगाया, जिनमें से लगभग 5,000 की मौत हो गई थी. इसके देखने पर साफ लगता है कि ये किसी बड़े मकसद से शुरू किया गया था. लेकिन आखिर में ये अधूरा रह गया.

हिटलर का बेस बनने वाला था
इस प्रेजेक्ट में जमीन के अंदर 7 परिसर थे जिनमें सले ओसोव्का सबसे प्रसिद्ध है. इसके गाइड ज़्डज़िस्लाव लाज़ानोव्स्की बताते हैं कि यह पहले हिटलर का मुख्यालय बनने वाला था. लेकिन बाद में इन सुरंगों का इस्तेमाल हथियार बनाने के लिए होने लगा. लेकिन एक ही परिसर पूरी तरह से तैयार नहीं हो सका. 16 मंजिलों के लिए अधूरा लिफ्ट शाफ्ट, अन्य भारी उपकरण नहरे आदि सब एक बड़े मकसद की ओर इशारा करते हैं जो आज तक रहस्य है.

इन सुरंगों के अधिकांश हिस्से अधूरे हैं जो इन्हें और भी रहस्यमयी बनाते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

वो सोने की ट्रेन की कहानी
रीज़े क साथ कई कहानियां जुड़ी हैं. जिनमें सबसे प्रसिद्ध है ‘नाज़ी गोल्ड ट्रेन’ की कहानी. लाज़ानोव्स्की के अनुसार, यह कहानी एक पोलिश व्यक्ति से शुरू हुई, जिसे युद्ध के बाद जर्मनों ने एक ट्रेन के बारे में बताया था. उसमें आसपास के गांवों से लूटा गया कीमती सामान था. सोवियत सेना से बचने के लिए आखिर में ट्रेन सुरंगों में छिपा दी गई थी. यह व्यक्ति इस कहानी से इतना जुनूनी हो गया कि वह ट्रेनों में सुरंगों की सैर करता रहा, लेकिन ट्रेन कभी नहीं मिली. हाल ही में, एक गुमनाम व्यक्ति ने पोलिश अधिकारियों को पत्र लिखकर दावा किया कि उसने उल्लू पहाड़ियों में छिपी ट्रेन की वैगनों का पता लगा लिया है.

एम्बर रूम एक अनमोल खज़ाना
इसके अलावा एक कहानी और है, जो एम्बर रूम से जुड़ी है. इसे दुनिया का आठवां आश्चर्य कहा जाता है. यह रूस का एक अनमोल खजाना था, जिसे नाज़ियों ने सेंट पीटर्सबर्ग के पास से लूट लिया था. कुछ का मानना है कि इसे रीज़े की सुरंगों में छिपाया गया., इन दावों का कभी कोई ठोस सबूत नहीं मिला.

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रीज़े का निर्माण ग्रॉस-रोसेन शिविर के कैदियों, मुख्य रूप से यहूदियों, पोलैंडावसी, और युद्धबंदियों ने किया था. इन मजदूरों ने बहुत खतरनाक हालात में काम किया था, जिसके कारण बीमारी, कुपोषण, आदि से हजारों की मौत हो गई. लाज़ानोव्स्की का कहना है कि यह जगह ना केवल नाज़ी इंजीनियरिंग का नमूना है, बल्कि उन लोगों की दुखद याद भी है, जिन्होंने इसे बनाया.

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