Last Updated:
देश में शादी के रिवाजों की कई परंपरा है, जिनमें सरहदी बाड़मेर का भी नाम शामिल होता है. दरअसल यहां दूल्हा-दुल्हन 7 नहीं, बल्कि 8 फेरे लेते हैं. आइए इस अनोखी परंपरा और इसके पीछे की वजह के बारे में जानते हैं.

गोदी में उठाकर फेरे लेते हुए
हाइलाइट्स
- श्रीमाली समाज में शादी में 8 फेरे होते हैं.
- दूल्हा दुल्हन को गोद में उठाकर 4 फेरे लेता है.
- शादी के समय दूल्हा-दुल्हन सफेद कपड़े पहनते हैं.
बाड़मेर:- अपने अनूठे रिवाजो, रस्मों और परंपराओं की वजह से राजस्थान को रंगीला राज्य कहा जाता है. राजस्थान में एक समाज ऐसा भी है, जिसमें 7 नहीं, आठ फेरे होते हैं. इससे भी अचरज में डालने वाली एक परंपरा यह भी है कि दूल्हा, दुल्हन को गोदी में उठाकर 4 फेरे पूरे करता है. हैरान कर देने वाली इन रस्मों को श्रीमाली समाज आज भी कायम रखे हुए है.
सरहदी बाड़मेर के श्रीमाली समाज में शादी सिर्फ सात नहीं, बल्कि आठ फेरों का वादा है. एक ऐसी परंपरा, जहां दुल्हन घोड़ी पर सवार होकर आती है और दूल्हा उसे गोद में उठाकर फेरे लेता है. श्रीमाली समाज की अनोखी शादी की रस्म में आठ फेरे लिए जाते हैं, जो इसे बाकी परंपराओं से अलग बनाता है.
फेरे के समय दूल्हा-दुल्हन पहनते हैं सादे कपड़े
भारत-पाकिस्तान की सीमा पर बसे बाड़मेर में बसने वाली श्रीमाली कम्युनिटी की विवाह पर होने वाली रस्में अनूठी हैं. श्रीमाली समाज में 7 नहीं, आठ फेरे होते हैं. दूल्हा और दुल्हन फेरे के समय कोई रंगीन वस्त्र नहीं पहनते हैं. श्वेत वस्त्रों में दूल्हा और दुल्हन अग्नि को साक्षी मानकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के 4 फेरे लेते हैं और उसके बाद होने वाली रस्म हर किसी को हैरान कर देती है.
क्या है इसके पीछे की परंपरा?
4 फेरों के बाद दूल्हा, दुल्हन को गोदी में उठाता है और चार फेरे और लेता है. श्रीमाली समाज के अध्यक्ष पंडित सुरेंद्र कुमार श्रीमाली बताते हैं कि महाभारत काल में रुक्मिणी के पिता ने उनका विवाह शिशुपाल से तय कर दिया था. लेकिन रुक्मिणी श्रीकृष्ण के साथ ही अपना जीवन बिताना चाहती थीं. इसलिए श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को विदर्भ से हरण कर लिया था और उसको उठाकर फेरे लिए थे.
श्रीमाली समाज भी तभी से चार फेरे दुल्हन को गोदी में उठाकर कर रहे हैं. यह रस्म दूल्हे की तरफ से दुल्हन की रक्षा के वचन के रूप में देखी जाती है. बाड़मेर के अलावा जैसलमेर, फलौदी, उदयपुर, बीकानेर में भी बहुतायत में श्रीमाली समाज निवासरत हैं, जो आज भी अपनी परंपरा का बखूबी निर्वहन कर रहा है.
Leave a Comment