ममीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें किसी जीव का शव इस तरह से रखा जाता है जिससे शव को अन्य जीव और कीटाणु ना खांए और ना ही शरीर के किसी हिस्से पर किसी तरह का रासायनिक प्रतिक्रिया या बदालव हो. पुरानी कई सभ्यताओं में शवों को ममी की तरह रखने जाने का रिवाज़ होता था. आज के वैज्ञानिक इन ममियों का अध्ययन करके उस दौर के इतिहास के बारे में जानने की कोशिश करते हैं. ऐसे ही एक अध्ययन में शोधकर्ताओं को एक पुरानी ममी में ऐसा टैटू देखा है जिसके स्याही आज भी साफ साफ दिख रही है. वैज्ञानिक हैरान है कि आखिर यह किस तरह कि स्याही थी जो आज तक बनी रह गई?
कितनी पुरानी है ये ममी?
यह ममी दक्षिण अमेरिकी महिला की है जिसकी ममी 800 साल पहले बनाई गई थी. एक करीब एक सदी पहले ही इटली के एक म्यूजियम को दान में दिया गया था. वैसे तो टैटू में स्याही का इस्तेमाल करीब एक हज़ार साल पहले से होता आ रहा है. लेकिन इस ममी में टैटू वैज्ञानिकों के लिए कई लिहाज से रहस्यमयी है.
कैसे हुई टैटू की पहचान?
इटली के ट्यूरिन विश्वविद्यालय के जियानलुइगी मंगियापेन की अगुआई में मानवविज्ञानी और पुरातत्वविदों की एक टीम ने ममी पर अनोखे टैटू डिज़ाइन पाए हैं. उन्हें असामान्य रूप से अच्छी तरह से संरक्षित किया गया था. ममीकरण प्रक्रिया ने उसकी त्वचा को काला कर दिया है, जिससे टैटू को देखना मुश्किल हो गया है. लेकिन कई सारी इमेजिंग तकनीकों के साथ, शोधकर्ता बेमिसाल डिज़ाइनों की बेहतर तस्वीर हासिल करने में कामयाब रहे.
ममी में टैटू का संरक्षित रहना बहुत ही मुश्किल होता है. ऐसे में गाल पर टैटू मिलना चौंकाने वाली घटना है. .(प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
गहराई तक असर था स्याही का
ममी के गालों पर एक कम से कम लेकिन असामान्य तीन-कतारों वाला डिज़ाइन पाया गया है. शोधकर्ताओं का कहना है कि टैटू गाल बहुत ही कम मिल पाते हैं. इसकी वजह ये भी है कि वे आसानी से छूट भी जाते हैं. लेकिन इस ममी में ये टैटू ना केवल कायम रहे बल्कि बहुत गहरे भी मिले हैं.
एक अलग तरह की स्याही
इसके अलावा, जिस स्याही का इस्तेमाल किया गया था वह भी काफी अनोखी थी. इसमें सामान्य चारकोल के बजाय मैग्नेटाइट, एक काला, धातु और चुंबकीय लौह अयस्क शामिल था. इसलिए ममी दक्षिण अमेरिका में अतीत में टैटू बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मैग्नेटाइट का “शायद सबसे पहला सबूत” बन सकती है.
कैसा था महिला का शव का हाल?
शव को बैठी हुई अवस्था में पाया गया था, उसके साथ कोई अंतिम संस्कार संबंधी आवरण, आभूषण या कब्र का सामान नहीं था.लेकिन उसके कपड़े के कुछ टुकड़े शरीर की सतह पर चिपके हुए थे. शोधकर्ताओं का मानना है कि कपड़े लंबे समय से खोए हुए पशु फाइबर के आवरण या बंडल के हो सकते हैं.
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जिस तरह से उनका शरीर एक सीधी स्थिति में बैठा हुआ था, उससे ‘फर्दो’ नामक एक संरक्षण तकनीक का पता चलता है. इस स्थिति में शरीर को कपड़े की कई परतों से कसकर लपेटा गया होगा और फिर एक बंडल में बाँधा गया होगा. यह सब पेरू के दक्षिणी तट पर एंडियन क्षेत्र के पैराकास संस्कृति में एक सामान्य अंतिम संस्कार प्रथा लगता है.
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